मैडॉक फिल्म्स की कॉमेडी-हॉरर फिल्मों की खास बात यह है कि इसमें भूत-प्रेत-चुड़ैल इत्यादि को लेकर पश्चिम की कोई नकल नहीं की जा रही, बल्कि अपने ही देश के अलग-अलग हिस्सों में प्रचलित दंतकथाओं का इस्तेमाल किया जा रहा है।… लोगों को ‘स्त्री-2’ में मज़ा आ रहा है। किसी से पूछिए कि उसे यह फिल्म हॉरर की वजह से पसंद आई या कॉमेडी की वजह से, तो वह बता नहीं पाएगा, क्योंकि हॉरर और कॉमेडी दोनों इस तरह गुंथे हुए हैं। यह फिल्म बताती है कि डर में भी कितनी कशिश है, और उसमें भी कितनी कॉमेडी संभव है। अब ज़रा ‘स्त्री-2’ से हट कर हिंदी सिनेमा पर निगाह डालिए। सच्चाई यह है कि ज्यादातर हिंदी फिल्में पिटे जा रही हैं। ज्यादातर हिंदी फिल्में पिटे जा रही हैं.. अब हमें यह गिनती बंद कर देनी चाहिए कि दो-तीन साल में अक्षय कुमार की कितनी फिल्में पिट चुकी हैं।
परदे से उलझती ज़िंदगी
फ़िल्मों के बारे में कोई नहीं कह सकता कि कौन सी फिल्म चलेगी और कौन सी नहीं चलेगी। इसलिए किसी बड़े स्टार या उसकी फिल्म से उम्मीद बांधना उतना ही फ़िज़ूल है जितना किसी हल्के स्टार या निर्माता की फ़िल्म को व्यर्थ समझना या हिकारत से देखना। ‘स्त्री-2’ की सफलता ने इस बात को नए सिरे से स्थापित किया है और कई लकीरें खींची हैं।
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